Tuesday, March 6, 2012

क्या जनसंख्या वास्तव में मूल कारण है ?

डॉ.अमृत

अनुवाद:- रुपिंदर
अक्सर अखबारों, चैनलों, बौधिक हलकों और आम लोगों में बात चीत के दौरान इस बात पर जोर दिया जाता है कि दुनिया में ख़ास कर भारत में बढ़ रही भूखमरी, गरीबी, रहन बसेरों की कमी और बेरोज़गारी का कारण आबादी में हो रही लगातार बढौतरी है । कुछ विद्वानों को तो हर मुश्किल, हर संकट यहाँ तक कि आर्थिक मंदी के पीछे भी बढ़ रही आबादी ही नजर आती है । आओ देखें इन फिकरों और तर्कों में कितनी हकीक़त है ?
अन्न की कमी और इस के नतीजे से फैलने वाली भूखमरी के पीछे बेलगाम आबादी की वृद्धि ही मुख्य कारण बताने वाले सिद्धांत का असल निर्माता है थामस मालथम जो कि अठारवीं सदी का एक अंग्रेज पादरी था । उस समय इंग्लैंड में पूंजीवादी विकास के कारण आबादी में एकदम वृद्धि हुई और चारों तरफ ग़रीबी, भूखमरी, महांमारी का दौर था । इस दौर में मालथम ने खोज की थी कि मनुष्यों की आबादी 1 , 2 , 4 , 8 , 16… की रफ्तार से भाव जिओमैटरिक प्रोग्रैशन में बढ़ती है जब की अन्न की पैदावार 1 , 2 , 3 , 4 , 5 ढंग से भाव अरिथमैटिक प्रोग्रैशन में । इसलिए भूखमरी का फैलना अटल है । वह इस खोज पर इतना विश्वास करते थे कि अपनी किताब ' ऐन ऐसे आन प्रिंसिपल्स आफ़ पापूलेशन' में उन्होंने आबादी कम करने के लिए लोगों को गैर - स्वास्थ्यप्रद तरीक़े से रखना और महामारियों को आवाहन देने की वकालत की | सब से ज़्यादा नाराज़ वह चिकित्सकों से था जो बीमार लोगों को बचा डालते थे । सन् 1834 में मालथम की मृत्यु से पश्चात उन का यह सिद्धांत आज भी दुनियेँ के बहुगिणती को लूटने वाला पूंजीपती जमात को खूब जमता है । बार-बार इस बात के शोशे छोड़े जाते हैं कि अन्न की कमी का असल कारण आबादी में वृद्धि है । अब भारत के सबंध में इस सिद्धांत को देखते हैं । सन् 1951 में भारत का आबादी लगभग 36 करोड़ थी जो वर्ष 2008 - 09 तक बढ़ कर 114 करोड़ हो गई है मतलब 3.16 गुणों वृद्धि । इन वर्षों के दौरान भारत में अनाज की पैदावार 5.1 करोड़ टन से बढ़ कर 22.90 करोड़ टन हो गई है मतलब कि 4.5 गुना वृद्धि । यह तथ्य रजिस्ट्रार जनरल आफ़ इण्डिया , इकनामिक सर्वे आफ़ इण्डिया में दर्ज है । इस तरह मालथम का यह अनुसंधान गलत साबित होता है । और तो और, मालथम के समय इंग्लैंड का आबादी 83 लाख थी जो आज 512 लाख है । अब इंग्लैंड में न वैसे भूखमरी है और न अन्न की कमी ।
क्या भारत में सचमुच ही अन्न की कमी है ? संतुलित भोजन के पैमाने के अनुसार औसत शारीरिक परिश्रम करने वाला बालिग पुरुष के लिए 520 ग्राम, औसत शारीरिक परिश्रम करने वाली बालिग महिला के लिए 440 ग्राम , 10 से 18 वर्ष के लड़के के लिए 420 ग्राम और लड़की के लिए 380 ग्राम प्रति दिन अनाज की जरूरत होती है । वर्ष 2008 - 09 के अनाज उत्पादन के आँकड़ों के हिसाब से भारत की प्रत्येक व्यक्ति को548 ग्राम अनाज प्रति दिन उपलब्ध करवाया जा सकता है । हालांकि भारत में अनाज की पैदावार बढ़ाई जा सकती है क्यूँकि भारत की कुल खेतीयोग भूमि के सिर्फ़ 50 फीसदी हिस्से को ही सिंचाई की सुविधा है,बाकी कृषि वर्षा सहारे है । इसके बावजूद बाढ़ और सूखे से होने वाली फ़सलों की तबाही अलग है, जिस को बहुत हद तक रोका जा सकता है पर पैदावार के मौजूदा स्तर के चलते अन्न की कोई कमी नहीं है ,जिस तरह सरकारों की ओर से हो - हल्ला मचाया जाता है ।
अकसर सरकारी टी. वी. चैनल पर चींटियों का झुण्ड दिखा कर लोगों को डराया जाता है कि अगर आबादी की वृद्धि ना रोकी गई तो लोगों को रहने का लिए स्थल नहीं मिलेगा और चींटियों का तरह रहना पड़ेगा । इस समय संसार का आबादी 6.5 अरब है । इतनी आबादी को रहने के लिए कितनी जगह का जरुरत होगी? अगर हम दुनिया के हर व्यक्ति को 1240 वर्ग फुट के हिसाब से चार - चार सदस्यों के परिवार को 5000वर्ग फुट ( अरबन असटेट की उच्च आमदन वर्ग के पलाट के भूखंडों (प्लाट) समान ) के पलाट बांटें तो पूरी दुनिया की आबादी भारत के दो सूबों महांराष्ट्र और मध्य प्रदेश ( क्षेत्रफल 8000 अरब वर्ग फुट ) में ही समा जाएगी क्यूँ कि भारत की आबादी दुनिया की आबादी का 17 फ़ीसदी हिस्सा है तो अनायास ही समझा जा सकता है कि कितना स्थल चाहए है | इस को और कम किया जा सकता है अगर घरों को कई मंज़िला बना दिया जाए । इसलिए रहने के लिए स्थल की कोई कमी नहीं लग रही । सन् 2001 का जनगणना के अनुसार भारत में 1.58 करोड़ घर खाली पड़े थे । इसके इलावा अगर उन घरों की गिनती करें जिन में छ - छ कमरों में दो - दो व्यक्ति ही रहते हैं ( अंबानी के 27 मंज़िले महलों जैसे पूंजीपतियों के'घर' इस से अलग है) तो आवास की भी कोई समस्या दिखलाई नहीं देती ।
फिर सवाल यह पैदा होता है कि मानव विकास के लिए अनाज और रहने के लिए योग्य स्थल के बावजूदऔर भी बहुत सुविधायों की जरूरत होती है । हिऊमन डिवैलपमैंट की 1998 की रिपोर्ट मुताबिक पूरी दुनिया की आबादी को बुनियादी सहूलतें जैसे बुनियादी शिक्षा, पीने के लिए साफ़ पानी, साफ़-सुथरा आस-पास,बुनियादी सेहत सहूलतें और जरुरत अनुसार पोषण, औरतों के लिए प्रजनन सम्बन्धी सेहत सहूलतें उपलबध करवाने पर आने वाला खर्च लगपग 40 अरब डालर है । यह रकम बड़ी लग सकती है पर क्या यह वाकई ही बहुत बड़ी है ? इसी रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में सुंदरतावर्धक सामग्री पर खर्च 8 अरब डॉलर , यूरोप में आइसक्रीम का खर्च 11 अरब डॉलर , अमेरिका - यूरोप में इतर का खर्च 12 अरब डॉलर , अमेरिका - यूरोप में पालतू जानवरों के खाने का खर्च 17 अरब डॉलर , यूरोप में सिगरेट का खर्च 50 अरब डॉलर , यूरोप में शराब पर खर्च 105 अरब डॉलर , दुनियेँ भर में नशों पर खर्च 400 अरब डॉलर , दुनियेँ भर में शस्त्रों पर फौजी खर्च ( 2009 ) - 1300 अरब डॉलर , आर्थिक मंदी से पश्चात पूंजीपती को दिये पैकेज - 700 अरब डॉलर है । हैरानी की बात यह है कि संपूर्ण खर्च सालाना है । भारत में सब को स्वास्थ्य और सेहत सुविधायें मुहैया करवाना कोई आसमान से तारे तोड़ने वाला बात नहीं है । ऐम. ऐफ. सी. के बुलेटिन में नरेंदर गुप्ता की प्रकाशत एक खोज रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि पूरे भारत के लोगों को संपूर्ण ज़रूरीदवाएँ निःशुल्क उपलब्ध करवाने के लिए 30,000 करोड़ रूपये की जरुरत है । बजट के अनुरूप भारत की2011 - 12 की घरेलू पैदावार 89 लाख करोड़ के क़रीब होने की उम्मीद है और इस बजट में सीधे-असीधे रूप में 5.12 लाख करोड़ रूपये की टैकस रियायतें पूंजीपतियों को दीं गई हैं पर इस केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य के लिए रखी राशि 26 करोड़ है जो पूरे बजट का महज़ 0.29 फ़ीसदी बनती है । अगर इसको दोगुन्ना कर दिया जाए तो बहुते लोगों को दवाइयाँ निःशुल्क मिल सकती हैं ।
एक बात और जो विचार करने योग्य है यह कि आबादी की वृद्धि का कारण जिस बहुते "चिंतक" लोगों के मस्तिष्कों में ढूँढ़ते हैं , वह भी आर्थिक हैं । यूरोपीय देशों में जगीरू उत्पादन सम्बन्धों का टूटने से जैसे ही वहां पूंजीवाद ने पैर जमाने शुरू किये , सब देशों की आबादी में एकदम वृद्धि हुई । यह वृद्धि सौ वर्ष से अधिक अन्तराल के पश्चात जा कर रुकी । अब अधिकतर यूरोपीय देशों की आबादी स्थिर है अथवा कम हो रही है, इस के साथ यह भी से जानने की जरुरत है कि आबादी में वृद्धि सिर्फ़ बच्चे पैदा होने से नहीं होती, बल्कि लोगों का कम मरना और औसत उम्र लंबी होने से भी होती है । अब जैसे भारत में आज़ादी समय औसत उम्र 46 वर्ष थी जो अब 70 वर्ष से ऊपर जा चुकी है । मृत्यु दर जो 30 प्रती हज़ार थी, अब 7प्रती हज़ार हो गई है । यह भी नहीं है कि जन्म दर कम नहीं हुई, जन्म दर भी कम हुई है, फ़र्क़ इतना है जन्म दर, मृत्यु दर के मुकाबले कम नहीं हुई । इस तरह देखा जाए तो आर्थिक विकास और इस से जुड़ा सांस्कृतिक विकास ही सब से बढ़िया 'गर्भ - निरोधक' है पर बहुगिणती का आर्थिक और सांस्कृतिक विकास साधनों के समान विभाजन से संभव है, जिस के बारे में कोई बात छेड़ना ज़रूरी नहीं समझा जाता । आबादी कम करने का मतलब सिर्फ़ गरीबों का आबादी कम करने से ही होता है । कितने फ़ीसदी घटाए -10 , 20 या फिर 30 फ़ीसदी । यूनाईटिड नेशनज युनिवर्सिटी - वाईडर ("N" - W945R) की अनुसंधान रिपोर्ट मुताबक भारत की उपर की 10 फ़ीसदी आबादी देश के कुल सम्पत्ति के 52 फ़ीसदी हिस्से पर काबिज़ है जब कि बाकी 90 फ़ीसदी आबादी के पास सिर्फ़ 48 फ़ीसदी सम्पत्ति ही है । इस को अगर और बारीकी से देखें तो उपर की 10 फ़ीसदी के एक फ़ीसदी के पास 16 फ़ीसदी, 5 फ़ीसदी के पास 21 फ़ीसदी और 10फ़ीसदी के पास 14 फ़ीसदी सम्पत्ति है। इसी तरह नीचे की 80 फ़ीसदी आबादी के सब से नीचे वाली 10फ़ीसदी के पास केवल 0.2 फ़ीसदी, उस से उपर वाली 20 फ़ीसदी के पास एक फ़ीसदी और 50 फ़ीसदी के पास 8 फ़ीसदी पूँजी है । इस तरह साफ़ है कि भारत की 90 फ़ीसदी आबादी भी ख़त्म अथवा कम कर दी जाए तो बाकी बची आबादी की अमीरी में कोई ख़ास वृद्धि नहीं होने वाली | हाँ आबादी कम करने का संजे गाँधी वाला नुस्खा ऊपर से लागू करना शुरू कर दें तो गुणातमक अंतर आएगा !
इस समय संसार की आबादी 6.5 अरब है । माहिरों के अनुसार वर्ष 2040 तक 7.6 अरब तक पहुँच जाएगी । चिंता का विषय यह है कि उस समय आबादी में बच्चों और युवकों का अनुपात आज के मुकाबले कहीं कम होगा । माहिर तो आबादी का असली संकट ही इस को मान रहे हैं क्यूँ कि किसी भी मानव समाज का सब से महत्वपूर्ण ताक़त है - बच्चे और युवक। यह संकट यूरोपीय देशों में तो आने शुरू भी हो गया है। कई यूरोपीय मुल्क अब लोगों को बच्चे पैदा करने का लिए उत्साहित कर रहे हैं। इस तरह स्पष्ट है कि जिन समस्याओं के लिए आबादी की वृद्धि को अपराधी ठहराया जाता है, असल में उनके पीछे आज का आर्थिक - राजनीतक ढाँचा जिम्मेदार है । जरुरत है इस ढाँचे को बदलने की, ना कि ग़रीबों को मसीही संदेश देने की अथवा जबरदस्ती नसबंदी जैसा नुसख़े सुझाने की और लोगों में आबादी के वृद्धि बारे में गलत धारणाओ का प्रसार करने की। असल जरुरत है समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक, परीक्षण और ईमानदारी से हर समस्या की तह तक जा कर जाँच - पड़ताल की विधि अपनाने की |



Sunday, March 4, 2012

क्या ईश्वर ने ब्रह्माण्ड की रचना की ? Stephen Hawkings




हमारे पास है पधार्थ और हमारे पास है उर्जा और ब्रह्माण्ड को बनाने के लिए जिस तीसरी चीज़ की जरूरत पड़ेगी वह है अंतरिक्ष...एक विशाल अंतरिक्ष! आप इसे सब कुछ कह सकते है अध्बूत ,खूबसूरत, हिंसक लेकिन इसे एक उपमा नही दिया जा सकता यह नहीं कहा जा सकता की यह तंग है हम जहाँ भी देखे हमें अंतरिक्ष नज़र आता है एक अंतहीन अंतरिक्ष चारों ओर फैला हूया ...बस इतना सिर चकरा देने के लिए काफी है |

तो फिर यह सारा पधार्थ ,ऊर्जा,अंतरिक्ष आया कहाँ से ?हमें बीसवी सदी तक इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था इसका जवाब एक व्यक्ति की अदभूत समझदारी से मिला |शायद धरती पे हूया सबसे अदभूत वैज्ञानिक -अल्बर्ट आइंस्टाइन |


आइन्स्टाइन ने बड़ी एक अजीब सी चीज़ देखी ब्रह्माण्ड को बनाने के लिए जो दो मुख्या चीज़ें चाहिए थी पधार्थ और ऊर्जा असल में वोह एक ही है | यह कहा जा सकता है की एक ही सिक्के के दो पहलु है इनके मशहूर सूत्र E=mc2 का मतलब है की पधार्थ को उर्जा और उर्जा को पधार्थ की तरह समझा जा सकता है इसलिए हमें ब्रह्माण्ड बनाने के लिए अब तीन चीजों की जगह दो चीजों की जरूरत है उर्जा और अंतरिक्ष तो फिर ये सारी उर्जा और अंतरिक्ष आया कहाँ से इसका जवाब वैज्ञानिकों की कई दशकों की लंबी खोजो के बाद मिला उर्जा और अंतरिक्ष एक घटना के बाद अपने आप पैदा हूए थे जिससे आज हम बिग बेंग के नाम से जानते है |

बिग बेंग के समय एक पूरा ब्रह्माण्ड उर्जा से भरपूर अस्तित्व में आया जिसका अपना अंतरिक्ष भी था

यह ऐसे फूल रहा था जैसे किसी गुब्बारे को फुलाया जा रहा हो|


तो फिर ये अंतरिक्ष और उर्जा आये कहाँ से ?

उर्जा से भरपूर ये पूरा ब्रह्मांड अंतरिक्ष का ये अदभूत विस्तार और इसमें मौजूद हर चीज़ क्या अचानक पैदा हो गयी? कुछ लोग मानते थे ये सब ईश्वर का ही पैदा किया गया था|

लेकिन विज्ञान कुछ और कहता है हम पधार्थ और ऊर्जा के उस फोर्मुले के पार जा सकते है जिसकी खोज आइन्स्टाइन ने की थी हम कुदरत के नियमों का इस्तेमाल ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को समझने के लिए कर सकते है |


बिग बेंग से जो सबसे बड़ा रहस्य जूडा हूया है वो यह की अंतरिक्ष और उर्जा का यह अदभूत विशाल अंतरिक्ष अचानक कैसे पैदा हो गया होगा इसका रहस्य ब्रह्माण्ड से बहुत ही अजीब तथ्य से जूडा हूया है|

भौतिकी के नियम नकारात्मक उर्जा नामक एक अस्तित्व की चीज़ की मांग करते है

इसे समझने के लिए एक छोटी से मिसाल देता हूँ कल्पना कीजिये एक आदमी एक सपाट मैदान में एक पहाड बनाना चाहता है यह पहाड ब्रह्माण्ड को दर्शायेगा | इस पहाड को बनाने के लिए वोह ज़मीन में एक गड्डा खोद रहा है और इस मिटटी से अपना पहाड बनाता है पर इस तरह वेह एक पहाड ही नहीं बना रहा वह एक गड्डा भी बना रहा है इसे हम पहाड का नकारात्मक रूप भी कह सकते है जो मिटटी अब तक गड्डे में थी अब पहाड बंद चुकी है ब्रह्मांड के शुरुआत में क्या हूया होगा इसके पीछे भी यही सिद्धांत काम करता है जब बिग बेंग ने बड़ी मात्र में सकारात्मक उर्जा पैदा की होगी उसने उतनी ही उर्जा में नकारात्मक उर्जा भी पैदा की होगी इस तरह से नकारात्मक और सकारात्मक बना के शून्य बनाते हैं हमेशा ...ये कुदरत का एक और नियम है

तो आज फिर वोह सारी नकारात्मक उर्जा कहाँ है ये हमारे कॉस्मिक के तत्व में है अंतरिक्ष में |

अंतरिक्ष अपने आप में नकारात्मक उर्जा का विशाल भंडार है इतना बड़ा भंडार की सारी चीज़े मिलकर शून्य बनाये| ब्रह्माण्ड के battery की तरह है जिसमें नकारत्मक ऊर्जा जमा होती रहती है|

अब जरा सकारत्मक रूप देखे हम जो पधार्थ और ऊर्ज ा आज देखते है वोह एक पहाड की तरह है

और इसी के पास बना गद्दा या नकारात्मक रुप असल में अंतरिक्ष के पास फैला हूया है|

तो क्या कोई सचमुच ईश्वर है इसका मतलब क्या है ?

इसका मतलब यह है की कोई अगर यह ब्रह्माण्ड शून्य ही है तो इसमें किसी ईश्वर की जरूरत नहीं है|



क्यूंकि हम जानते है की ब्रह्माण्ड के नकारत्मक और सकारात्मक रूप मिलाकर शून्य बनाते है तो बस हमें यह समझना है की क्या या मैं ये कहूँ की कौन है जिसने पहली बार इस प्रक्रिया को शुरू किया होगा |

ऐसा क्या हूया की अचानक ब्रह्माण्ड उभर आया होगा |

पहली नज़र में ये परेशानं कर देने वाली समस्या लगती है क्यूंकि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में चीज़ें अचानक प्रकट नही हो जाति |

क्या ऐसा हो सकता है हम चुटकी बजाये और कॉफी सामने आजये... उसे हमे दूसरी चीजो से मिलकर बनाना पड़ता है जैसे काफी पावडर, पानी , दूध,शक्कर लेकिन अब जरा काफी की इस कप के अंदर जाइये तो दूध के कणों से गुजरते हुए आप अटॉमिक (atomic)स्तर पर पहुंचे और फिर सब अटॉमिक स्तर पर पहुँच जाए तो आप एक ऐसी दुनिया में पहुँच सकते है जहाँ कुछ नहीं से कुछ प्रकट होना मुमकिन है भले ही थोड़ी समय के लिए ही ऐसा इसलिए क्यूंकि इस स्तर पर प्रोटोन जैसे कण कुदरत के नियमों के अनुसार बर्ताव करते है जिसे हम इसे (quantum mechanics) कुअनतम मेकानिक्स कहते है और वो सचमुच अचानक प्रकट हो सकते है थोड़ी देर तक रुक सकते है और फिर दोबारा गायब हो सकते है ताकि कहीं और प्रकट हो सके क्यूंकि हमे पता है की कभी ब्रहमांड बहुत छोटा था एक प्रोटोन से भी छोटा| इसका एक बड़ा ही असाधारण मतलब है... इसका मतलब अपने असीम और चक्र देने वाले विस्तार जटिलता के बावजूद ब्रह्माण्ड कुदरत के नियमों को तोड़े बिना अस्तित्व में आ गया होगा उस पल के बाद से बड़ी मात्र में उर्जा निकली और अंतरिक्ष में फ़ैल गया एक ऐसी जगह जहाँ सारी नकारत्मक उर्जा जमा हो सकती थी ताकि सबकुछ संतिलित हो सके |

आइन्स्टीन ने बताया है बिग बेंग के समय एक हैरत भरी घटना घटी होगी और वोह थी ” समय की शुरुआत” दिमाग चक्र देने वाले इस विचार को समझने के लिए इस बात पर विचार कीजिये

अंतरिश में एक ब्लैक होल तैर रहा है

एक आम ब्लैक होल ऐक बहुत विशाल तारा होता है जो अपने ही भीतर ढय जाता है ये इतना विशाल होता ही इसके गुरुत्व से प्रकाश भी बहार नहीं जा सकता इसलिए यह हमेश घना कला होता है इसका गुरुत्व छेत्र इतना ताकतवर होता है ना सिर्फ रौशनी बल्कि समय को भी अपने में खींच लेता है इसे समझने के लिए कल्पना कीजिये एक घडी ब्लैक होले की तरफ खींची जा रही है जैसे जैसे वोह उसके नज़दीक जायेगी समय धीरे होता जायेगा और अंत में रुक जायेगा वोह इसलिए नहीं रुकी क्यूंकि वोह बिगड गयी है वोह इसलिए रुकी क्यूंकि ब्लैक होले के अंदर समय का अस्तित्व ही नहीं है और ब्रह्माण्ड की शुरुवात में येही हूया होगा|

आप बिग बेंग से पहले के समय में नहीं पहुँच सकते क्यूंकि बिग बेंग से पहले कुछ नहीं था आख़िरकार हमने ऐसी चीज़ खोज ली है जिसका कोई कारण नहीं क्यूंकि तब समय था ही नहीं इसका मतलब यह है की ब्रहमांड का कोई रचनकार हो ही नहीं सकता क्यूंकि जब समय ही नहीं था तो फिर रचनाकार कैसे हो सकता है |

क्यूंकि खुद समय भी बिग बेंग के दौरान शुरू हूया था इसका मतलब यह ऐसी घटना थी जिसका कोई कारण कोई रचनाकार नहीं था |

हम सब मानने के लिए आज़ाद है की हम क्या चाहते है और येही वजह है की हमें आज यह समाज आ गया है की ईश्वर का अस्तित्व नहीं है ब्रह्माण्ड को किसी ने नहीं रचा और कोई हमारे भाग्य को न्रिधारित नहीं करता

इससे मुझे एक बड़ी अदभूत बात समझ आती है न ही तो कोई स्वर्ग है और ना ही कोई मौत के बाद का जीवन ब्रह्माण्ड के आकार को समझने के लिए हमारे पास एक ही जीवन है |


मौखिक से लिखित अनुवादक - अमित कोम्पनेरो