खाने की टेबुल पर जिनके
पकवानों की रेलमपेल
वे पाठ पढ़ाते हैं हमको
'सन्तोष करो, सन्तोष करो!'
उनके धन्धों की ख़ातिर
हम पेट काटकर टैक्स भरें
और नसीहत सुनते जायें --
'त्याग करो, भई त्याग करो!'
मोटी-मोटी तोंदों को जो
ठूँस-ठूँसकर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते --
'सपने देखो, धीर धरो!'
बेड़ा ग़र्क़ देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं -
'तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो!'