
भारत में धर्म के नाम पे राजनीति होना कोई नई बात नहीं है इसमें मुख्य बात यह है की यह धर्म के नाम पर राजनीति होती क्यों है | कुछ पार्टियाँ अपनी राजनीति भुनाने में इन हथकंडो का भरपूर सहारा लेती है| लेकिन जनता को यह समझना चाहिए की इससे सिर्फ मानवता और इंसानियत ही ख़त्म होती है ना की हमारी दिक्कतें | कुछ पार्टियाँ तो यह भी कहती है की हिंदुस्तान में सिर्फ हिन्दुओं को रहने का हक है अगर अन्य धरम के लोग यहाँ रहे तो हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे और दोबारा उन्ही धर्मों का राज़ होगा जो यहाँ पहले महल बनवाया करते थे जिनकी पीड़ी दर पीड़ी राज करती थी |
यह सब खोकली बातें है इनका कोई महत्त्व नहीं है ...भारत में एक बड़ी जनसँख्या जो गरीबी में बसर करती है जिसे आज तक आजादी नहीं मिली जो अपनी ज़िन्दगी सिर्फ दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए गुज़ार देती है जिसे कोई सुविधा नहीं मिली उसके लिए २६ जनवरी और १५ अगस्त का कोई महत्त्व नहीं और यह लाजमी बात भी है | क्या यह गरीब मजदूर और किसान लोग इसलिए पैदा हूए की काम करे और दो वक़्त की रोटी के लिए भी तरसें जो इनका हक है बाकी शौक तो इन्हें पता ही नहीं होते क्या है | ८४ और गोधरा दंगों में कितने बेकसूर लोगों की जान गयी लेकिन इन्हें कराने वालों का आज तक कोई बाल भी बाका नहीं कर पाया | धर्म के चक्कर में आकर भ्रष्ट पार्टिओं को वोट देने का एक कारण अशिक्षा भी है | साफ़ बात तो यह है की लोगों को मानवता पे विश्वास करना चहिये ना की धर्म की आड़ में राजनीती करने वालों का |